शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

कहीं खो गया मेरा बस्तर . . . . . .

आदिम सभ्यता से परिचय कराता बस्तर!
शांत, निष्छल, निष्कपट बस्तर!
मनोरम वादियों, घने जंगलों से आच्छादित बस्तर!
जिस बस्तर को बचपन में देखा था, जाना था, वो बस्तर आज कहीं खो गया हैं। शोषण, अन्याय, अत्याचार एवं भ्रष्टाचार से बस्तर बोझिल हो थक हार कर भटक गया हैं।
80 के दशक तक बस्तर की शांत वादियों में जंगली जानवारों की आती आवाजों से इंसान डरा करता था, किन्तु शनै शनै अब इंसान इंसानों से ही डरने लगा हैं। मांदर की थाप की आवाज के स्थान पर अब गोलियों की आवाज सुनाई देने लगी हैं।
आज बस्तर में जो भी घट रहा हैं, उसके जिम्मेदार कौन हैं ?
दूसरों पर दोषारोपण करने से पहले हम सबको अपने गिरेबार में झांक कर देखना होगा। दूसरों पर उंगली उठाने से पहले अपनी ओर उठ रही उंगलियों को देखना होगा। अपने आप हमें अपने प्रश्नों का जवाब मिल जायेगा।
बस्तर को प्रयोगशाला की तरह समझने एवं उपयोग करने वाले नौरशाहों एवं जलप्रतिनिधियों ने अभी भी सबक नही सिखा हैं। अभी भी सरकारें बस्तर को प्रगोलशाला एवं आदिवासियों को बोट बैंक समझकर ही इस्तेमाल कर रही हैं। इसमें अब वे भी शामिल हो गयें हैं जो उनके द्वारा उनके बीच के चुने हुए नुमाइंदे हैं।
उस बस्तर को वापस लाने की पहल में आप भी शामिल हो जाइए, उस बस्तरिया की आवाज से आवाज मिला कर बस्तर में शांति की फिजा फिर से कायम हो, शोषण, भ्रष्टाचार, अन्याय एवं अत्याचार से मुक्ति मिले, जंगलों में गुंजती आतंकी आवाज से मुक्ति मिले इस हेतु संकल्पित हो कर शांति का पैगाम फैलाने में योगदान देवें। अपने विचार एवं सुझाव भेज कर अपनी आवाज बस्तरिया की आवाज के साथ बुलंद करें।